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य॒माय॑ यम॒सूमथ॑र्व॒भ्योऽव॑तोका संवत्स॒राय॑ पर्य्या॒यिणीं॑ परिवत्स॒रायावि॑जाता- मिदावत्स॒राया॒तीत्व॑रीमिद्वत्स॒राया॑ति॒ष्कद्व॑रीं वत्स॒राय॒ विज॑र्जरा संवत्स॒राय॒ पलि॑क्नीमृ॒भुभ्यो॑ऽ जिनस॒न्धꣳ सा॒ध्येभ्य॒श्चर्म॒म्नम् ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒माय॑। य॒म॒सूमिति॑ यम॒ऽसूम्। अथ॑र्वभ्य॒ इत्यथ॑र्वऽभ्यः। अव॑तोका॒मित्यव॑ऽतोकाम्। सं॒व॒त्स॒राय॑। प॒र्य्या॒यिणी॑म्। प॒र्य्या॒यिनी॒मिति॒ परिऽआ॒यिनी॒॑म्। प॒रि॒व॒त्स॒रायेति॑ परिऽवत्स॒राय॑। अवि॑जाता॒मित्यवि॑ऽजाताम्। इ॒दा॒व॒त्स॒राय॑। अ॒तीत्व॑री॒मित्य॑ति॒ऽइत्व॑रीम्। इ॒द्व॒त्स॒रायेती॑त्ऽवत्स॒राय॑। अ॒ति॒ष्कद्व॑रीम्। अ॒ति॒स्कद्व॑री॒मित्य॑ति॒ऽस्कद्व॑रीम्। व॒त्स॒राय॑। विज॑र्जरा॒मिति॒ विऽज॑र्जराम्। सं॒व॒त्स॒राय॑। पलि॑क्नीम्। ऋ॒भुभ्य॒ इत्यृ॒भुऽभ्यः॑। अ॒जि॒न॒स॒न्धमित्य॑जिनऽस॒न्धम्। सा॒ध्येभ्यः॑। च॒र्म॒म्नमिति॑ चर्म॒ऽम्नम् ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:30» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा राजन् ! आप (यमाय) नियमकर्त्ता के लिए (यमसूम्) नियन्ताओं को उत्पन्न करनेवाली को (अथर्वभ्यः) अहिंसकों के लिए (अवतोकाम्) जिसकी सन्तान बाहर निकल गई हो, उस स्त्री को (संवत्सराय) प्रथम संवत्सर के अर्थ (पर्यायिणीम्) सब ओर से काल के क्रम को जाननेवाली को (परिवत्सराय) दूसरे वर्ष के निर्णय के लिए (अविजाताम्) ब्रह्मचारिणी कुमारी को (इदावत्सराय) तीसरे इदावत्सर में कार्य साधने के अर्थ (अतीत्वरीम्) अत्यन्त चलनेवाली को (इद्वत्सराय) पाँचवें इद्वत्सर के ज्ञान के अर्थ (अतिष्कद्वरीम्) अतिशय कर जाननेवाली को (वत्सराय) सामान्य संवत्सर के लिये (विजर्जराम्) वृद्धा स्त्री को (संवत्सराय) चौथे अनुवत्सर के लिए (पलिक्नीम्) श्वेत केशोंवाली को (ऋभुभ्यः) बुद्धिमानों के अर्थ (अजिनसन्धम्) नहीं जीतने योग्य पुरुषों से मेल रखनेवाले को (साध्येभ्यः) और साधने योग्य कार्यों के लिए (चर्मम्नम्) विज्ञान शास्त्र का अभ्यास करनेवाले पुरुष को उत्पन्न कीजिए ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - प्रभव आदि ६० संवत्सरों में पाँच-पाँच कर १२ बारह युग होते हैं, उन प्रत्येक युग में क्रम से संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर और इद्वत्सर। ये पाँच संज्ञा हैं, उन सब काल के अवयवों के मूल संवत्सरों को विशेष कर जो स्त्री लोग यथावत् जान के व्यर्थ नहीं गँवाती, वे सब प्रयोजनों की सिद्धि को प्राप्त होती हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यमाय) नियन्त्रे (यमसूम्) या यमान् नियन्तॄन् सूते ताम् (अथर्वभ्यः) अहिंसकेभ्यः (अवतोकाम्) निरपत्याम् (संवत्सराय) (पर्यायिणीम्) परितः कालक्रमज्ञाम् (परिवत्सराय) द्वितीयवर्षनिर्णयाय (अविजाताम्) अप्रसूतां ब्रह्मचारिणीम् (इदावत्सराय) इदावत्सरस्तृतीयस्तत्र कार्य्यसम्पादनाय। अत्र वर्णव्यत्ययः। (अतीत्वरीम्) अतिगमनशीलाम् (इद्वत्सराय) पञ्चमाय वर्षाय (अतिष्कद्वरीम्) अतिशयेन या स्कन्दति जानाति ताम् (वत्सराय) सामान्याय (विजर्जराम्) विशेषेण जर्जरीभूताम् (संवत्सराय) चतुर्थायानुवत्सराय। अत्रानोः पूर्वपदस्य लोपः। (पलिक्नीम्) श्वेतकेशाम् (ऋभुभ्यः) मेधाविभ्यः (अजिनसन्धम्) जेतुमयोग्यान् संदधाति तम्। अत्र जि धातोः कर्मणि नक् ॥ (उणा०३.२) (साध्येभ्यः) ये साद्धुं योग्यास्तेभ्यः (चर्मम्नम्) यश्चर्म विज्ञानं म्नात्यभ्यस्यति तम् ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर राजन् वा ! त्वं यमाय यमसूमथर्वभ्योऽवतोकां संवत्सराय पर्य्यायिणीं परिवत्सराया-विजातामिदावत्सरायातीत्वरीमिद्वत्सरायातिष्कद्वरीं वत्सराय विजर्जरां संवत्सराय पलिक्नीमृभुभ्योऽजिनसन्धं साध्येभ्यञ्चर्मम्नमासुव ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - प्रभवादिषष्टिसंवत्सरेषु पञ्च पञ्च कृत्वा द्वादश युगानि भवन्ति, प्रत्येकयुगे क्रमेण संवत्सरपरिवत्सरानुवत्सरेद्वत्सराः पञ्च सञ्ज्ञा भवन्ति, तान् सर्वकालावयवमूलान् विशेषतया याः स्त्रियो यथावद्विज्ञाय व्यर्थन्न नयन्ति, ताः सर्वार्थसिद्धिमाप्नुवन्ति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ६० संवत्सराय पाच पाच करून १२ युगे असतात. प्रत्येक युगात क्रमाने संवत्सर, प्रभव इत्यादी परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर ही पाच असतात. काळाच्या अंगांना म्हणजे मूळ संवत्सराला जाणून ज्या स्रिया वेळ व्यर्थ घालवित नाहीत. त्यांच्याकडून सर्व प्रयोजने सिद्ध होतात.